कुछ प्राचीन आख्यानों के अनुसार यज्ञभूमि की अंतिम सीमा प्रयाग थी। यज्ञ आर्यों/भरतों की परंपरा थी। इसका अर्थ प्रयाग भारतवर्ष की पूर्वी सीमा थी। यदि आर्य-आगमन की कथा को आधार माना जाए तो यह आर्यों के आगमन से पूर्व के इतिहास की थाती है। इसके अनार्य होने का एक मिथकीय साक्ष्य यह भी है कि यह प्रदेश मनु-पुत्री (आर्य राजा) इला का राज्य है, जिसे पुरुष-प्रधान आर्य-परंपरा के प्रभाव में राजा इल भी कहा जाता है। पुरुरवा का जन्म इसी कन्या के किसी चंद्रोपसक अनार्यपुरुष ‘बुध’ के साथ सहवास से हुआ। आर्य-परंपरा को ध्यान में रखते हुए इसे मिथकीकृत करके पुरुरवा ऐल के जन्म की मिथकीय कथा रची गई। इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि इसे शिव-पार्वती का रमण-क्षेत्र माना गया और शिव अनार्य देव हैं। तब मन कामेश्वर इस रमण-भूमि के केंद्रीय देवता रहे होंगे। इसे एक शापित क्षेत्र भी कहा गया जहां पहुंचकर पुरुष स्त्री बन जाता है (मिथक के अनुसार मनु के पुत्र के साथ भी ऐसा ही हुआ), अर्थात आर्य-परंपरा के विपरीत भारत-जन के प्रभाव से पूर्व यहां अनार्य स्त्री-प्रधान समाजव्यवस्था लागू रही होगी, जिसके प्रभाव में ...
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