पिछले दिनों कहीं पढ़ा कि भारत बार-बार पाकिस्तान का राग अलापता रहा है, लेकिन उसका वास्तविक और बड़ा शत्रु चीन है। सवाल बड़े और छोटे का नहीं, सोचने के तरीके का है। अगर हम यह सोचते हैं, बोलते हैं और बर्ताव कराते हैं कि कौन मेरा शत्रु है और कौन मित्र तो हमारी सोच धीरे-धीरे शत्रुता और मित्रता में अपने-आप ढलने लगती है। जो मित्र है वह भी शत्रु हो जाता है और जो शत्रु है वह भी मित्र। ज़ाहिर है भारत और चीन के बीच भी उसी तरह के सीमा विवाद हैं, जैसे भारत और पाकिस्तान के बीच। दोनों देशों के बीच की सीमाएं, सीमाएं नहीं है, बल्कि नियंत्रण रेखाएं हैं। किसी की नज़र में कश्मीर धंसा है तो किसी की नज़र में अरुणाचल। दोनों ही अपनी लपलपाती जीभ भारत की ओर फैलाए हैं। परन्तु… यह परन्तु… ही वह बिंदु है जहां ठहराना हर भारतीय के लिए विवशता है। हमारे बाज़ार, हमारे दिए, पटाखे, रंग, तीज और त्यौहार सब पर धीरे-धीरे चीन पैर पसार रहा है और हम उसे चुपचाप देखने को विवश ही नहीं, उसके सहभागी भी हैं। हम दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार हैं, दुनिया के तमाम देशों की हममें रुचि है। लेकिन, सीमाई रूप से कोई उतना करीब नहीं है, जित...
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