सामाजिक माध्यम हमारे व्यवहार, चिंतन और विचार-विनिमय की रीढ़ बन गए हैं। ऐसे में सामाजिक माध्यमों पर चलने वाली बहसें आज महत्वपूर्ण हैं। छठ पर्व के बहाने बिहार की स्त्रियों के नाक पर सिंदूर लगाने के प्रश्न को लेकर हिन्दी की प्रसिद्ध स्त्रीवादी लेखिका मैत्रेयी पुष्पा ने पूरे स्त्री समुदाय में सिंदूर के प्रयोग को प्रश्नांकित किया। इसपर सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ लिखा भी गया और परंपरागत मीडिया ने भी इस मुद्दे पर पर बहस की। अवश्य ही यह नया प्रश्न नहीं है, पर उन्होंने इसे नए सिरे से इसे उठाया है। हममें से तमाम परिवारों की स्त्रियां सधवा धर्म के पालन के लिए सिंदूर का प्रयोग करती हैं, जबकि पुरुष इस तरह का कोई विवाह चिह्न धारण नहीं करते। यह सामाजिक विभेद की प्रवृत्ति को बतता है। आज की युवा पीढ़ी धीरे-धीरे इससे दूर जा रही है वह भी बिना किसी हो-हल्ले के। यह भी उतना ही सही है जितनी पहली बात। इन सभी प्रश्नों से अलग एक और सवाल है कि क्या एक हिन्दू स्त्री के लिए सचमुच सिंदूर अनिवार्य है ? क्या इसका कोई शास्त्रीय विधान है या जिस विवाह मंडप में एक लड़की को सिंदूर पहनाकर स्त्री बना दिया जाता है, उसके व...
समाज, संस्कृति, साहित्य और विश्व-निति का वर्तमान