देश में एक वर्ग ऐसा भी है जो उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी शहरों, नगरों या फिर किसी महानगरों में रोज़गार की तलाश में भटक रहा है। ऐसे उच्च डिग्रीधारी लोगों का कोई स्थाई ठिकाना नहीं है और ये अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। रोज़ सुबह एक उम्मीद लिए मैदान में उतरता है और शाम होते ही निराश चेहरे के साथ अपने आशियाने में वापस लौट जाता है। कभी दिन अच्छा हुआ तो अखबार में कोई विज्ञापन देखने के बाद कोई छोटी-मोटी नौकरी लग जाती है और अगर दिन सही नहीं हआ तो खाली हाथ घर आना पड़ता है। हैरत की बात यह है कि यह वर्ग फिर भी जी रहा है, विवाह कर रहा है, बच्चे पैदा कर रहा है और उन्हें जैसे-तैसे पढ़ा-लिखाकर अपनी-सी स्थिति में खड़ा कर चुप-चाप नया भारत गढ़ रहा है। मेरे एक साथी ने जब मेरा ध्यान इस ओर आकर्षित किया तब मुझे उच्च शिक्षा प्राप्त बेरोज़गार लोगों की ज़िन्दगी के बारे में सोचने का अवसर प्राप्त हुआ। अब आप कह सकते हैं कि यह वर्ग खुद-ब-खुद कोई काम क्यों नहीं करता? कोई धंधा-पानी ? हमारे देश की हालत ऐसी हो चली है कि उच्च शिक्षित बेरोज़गारों को कोई प्रॉपर ट्रेनिंग भी नहीं मिलती है जि...
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