सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

ब्रिटिश लोकतंत्र और बहुलता वाद का खोखलापन

 ब्रिटिश भेदभावपूर्ण नीति: एक आलोचनात्मक दृष्टिकोण


ब्रिटेन, जो लोकतंत्र और समानता का प्रतीक माना जाता है, अपने बहुसांस्कृतिक समाज और विविधता की नीति पर गर्व करता है। परंतु हाल की घटनाओं ने ब्रिटिश समाज और उसकी नीतियों की वास्तविकता पर सवाल खड़े किए हैं। रामी रेंजर और अनिल भनोट को उनके पदों से हटाना, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भेदभावपूर्ण नीति का प्रतीक बन गया है।


1. ब्रिटिश बहुलतावाद का खोखलापन


ब्रिटेन में बहुसांस्कृतिक समाज की स्थापना का दावा किया जाता है, लेकिन व्यवहार में यह नीति अक्सर बहुसंख्यक समुदाय के पक्ष में झुकी हुई प्रतीत होती है।


रामी रेंजर और अनिल भनोट का मामला:

इन दोनों को ऐसे मुद्दों पर बोलने के लिए निशाना बनाया गया, जिनमें एक ने भारत की छवि की रक्षा की, जबकि दूसरे ने अल्पसंख्यकों के समर्थन में आवाज उठाई।


बीबीसी विवाद:

बीबीसी की विवादित डॉक्यूमेंट्री की आलोचना करने पर रामी रेंजर के खिलाफ कार्रवाई यह दर्शाती है कि भारतीय मूल के व्यक्तियों के विचारों को दबाने का प्रयास किया गया।



2. धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति और ब्रिटिश उदासीनता


ब्रिटेन अक्सर मानवाधिकार और अल्पसंख्यकों की रक्षा के नाम पर दूसरे देशों को पाठ पढ़ाने की कोशिश करता है। लेकिन जब बात भारतीय या अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की आती है, तो उसकी नीति में दोहरा रवैया नजर आता है।


बांग्लादेशी हिंदुओं पर अत्याचार:

2021 में बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हुए हमलों पर अनिल भनोट की आवाज को दबाने का प्रयास यह दर्शाता है कि ब्रिटेन इन मुद्दों को गंभीरता से नहीं लेता।


अंतरराष्ट्रीय समुदाय का रुख:

ब्रिटेन ने न तो इन मुद्दों पर स्पष्ट स्थिति ली और न ही धार्मिक हिंसा के खिलाफ आवाज उठाई।



3. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश


ब्रिटेन, जो प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पक्षधर है, अपने देश में असहमति की आवाजों को दबाता हुआ नजर आता है।


चयनात्मक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता:

जहां कुछ समुदायों के विचारों को पूरी छूट दी जाती है, वहीं भारतीय मूल के लोगों की आलोचनात्मक टिप्पणियों को सेंसर किया जाता है।


राजनीतिक दबाव और पक्षपात:

यह स्पष्ट है कि राजनीतिक दबाव और मीडिया की भूमिका ऐसे निर्णयों को प्रभावित करती है, जो ब्रिटेन के बहुसांस्कृतिक समाज के दावों को कमजोर करते हैं।



4. ब्रिटेन की नीति का प्रभाव


ब्रिटिश नीतियों का यह दोहरा रवैया भारतीय मूल के व्यक्तियों और दक्षिण एशियाई समुदायों में असंतोष पैदा करता है।


आत्मसम्मान और पहचान का संकट:

भारतीय मूल के नागरिकों के साथ भेदभाव उनके सामुदायिक योगदान को हाशिये पर धकेलता है।


वैश्विक स्तर पर ब्रिटेन की छवि:

ऐसे भेदभावपूर्ण निर्णय ब्रिटेन को एक निष्पक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में कमजोर करते हैं।



5. सुधार की आवश्यकता


ब्रिटेन को अपनी नीतियों में निष्पक्षता लाने और बहुसांस्कृतिक समाज के सिद्धांतों का पालन करने की आवश्यकता है।


अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा:

सभी समुदायों को समान अवसर और अधिकार दिए जाने चाहिए।


अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संरक्षण:

असहमति की आवाजों को दबाने की बजाय उनकी बात सुनने की प्रवृत्ति विकसित करनी होगी।



निष्कर्ष


ब्रिटेन का बहुलतावाद और समानता का दावा तभी सार्थक होगा, जब वह सभी समुदायों के साथ समान व्यवहार करेगा। भारतीय मूल की हस्तियों के खिलाफ भेदभाव और धार्मिक अल्पसंख्यकों की अनदेखी यह संकेत देती है कि ब्रिटेन को अपनी नीति और व्यवहार में बड़ा बदलाव करना होगा। यह केवल भारतीय मूल के नागरिकों

 की नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश होगा।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कश्मीर के रास्ते ही सुलझेगी कश्मीर समस्या

कश्मीर भारत की नाभि है, जहां उसकी अंतरराष्ट्रीय रणनीति का अमृत है। उसका सूखना भारत की अंतरराष्ट्रीय शाख और उसकी भू राजनैतिक स्थिति दोनों को प्रभावित करेगी। इसलिए लगभग 70 वर्षों से यह भारत के लिए नाक का सवाल बना है। इसके बावजूद स्वयं कश्मीरियों की स्थिति इन 70 सालों में लगातार बदतर हुई है, चाहे वह पाक अधिकृत हो या भारत द्वारा अंगीकृत। इन दोनों के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान है । 

संस्कृति चिंतक कुबेरनाथ राय की स्मृति में जारी हुआ डाक टिकट

कुबेरनाथ राय पर डाक टिकट जारी करते हुए माननीय संचार राज्यमंत्रीभारत सरकार श्री मनोज सिन्हा जी 9 मार्च, नई दिल्ली। भारत सरकार के संचार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) माननीय मनोज सिन्हा दवारा हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार और भारतविद् कुबेरनाथ राय पर एक डाकटिकट जारी किया गया। कार्यक्रम का आयोजन कुबेरनाथ राय के गृहजनपद ग़ाज़ीपुर के जिला मुख्यालय स्थित मुख्यडाकघर में किया गया। इस कार्यक्रम में स्वर्गीय राय साहब के अनुज पंडित वात्स्यायन भी बतौर विशिष्ट अतिथि शामिल हुए। कार्यक्रम का आयोजन स्वर्गीय राय साहब के गृह जनपद ग़ाज़ीपुर के प्रधान डाकघर में 9 मार्च को अपराह्न 2 बजे किया गया था। सम्मानित हुई उनकी जन्मभूमि गाजीपुर दीप प्रज्वलन करते स्वर्गीय राय के अनुज पंडित नागानंद जी हिंदी के अद्वितीय निबंधकार कुबेरनाथ राय का जन्म 26 मार्च 1933 को गाजीपुर जनपद के ही मतासां गांव में हुआ था। वे अपने सेवाकाल के अंतिम दिनों में गाजीपुर के स्वामी सहजानंद सरस्वती महाविद्यालय के प्राचार्य रहे, जहां से सेवानिवृत्त होने के बाद 5 जून 1996 को उनका देहावसान उनके पैतृक गांव में ही हुआ। कुबेरन...