सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

ब्रिटेन ने दो भरतवंशियों से सम्मान छीना


हाल के दिनों में दो ब्रिटिश-भारतीय हस्तियों, रामी रेंजर और अनिल भनोट, के साथ हुए घटनाक्रम ने दुनिया भर में चर्चा का विषय बना दिया है। यह घटनाएँ न केवल धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राजनीतिक दबाव के विषय में भी सवाल उठाती हैं।

घटनाओं का सारांश

1. अनिल भनोट का योगदान और विवाद
अनिल भनोट, हिंदू काउंसिल यूके के पूर्व निदेशक, ने 2021 में बांग्लादेशी हिंदुओं पर अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई थी। उनकी चिंता उन बढ़ते हमलों पर थी, जो हिंदू समुदाय के धार्मिक स्थलों, घरों और व्यवसायों पर हो रहे थे। इस दौरान, बांग्लादेश में हिंदुओं को जान-माल का नुकसान झेलना पड़ा और उनका बड़े पैमाने पर पलायन हुआ।


2. रामी रेंजर का मामला
रामी रेंजर ने बीबीसी की विवादित डॉक्यूमेंट्री की आलोचना की थी, जिसमें भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर केंद्रित विषयों को प्रस्तुत किया गया था। उन्होंने इसे भारत की छवि को बदनाम करने वाला बताया। यह बयान ब्रिटेन में कुछ वर्गों के लिए आपत्तिजनक साबित हुआ, जिससे उनके खिलाफ कार्रवाई हुई।



धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले: ऐतिहासिक और वर्तमान परिप्रेक्ष्य

बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार नया मुद्दा नहीं है। 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान, लाखों हिंदुओं को सामूहिक हत्याओं, बलात्कार और जबरन विस्थापन का सामना करना पड़ा। स्वतंत्रता के बाद भी, धार्मिक कट्टरता का दौर जारी रहा।

2013-2021 के आंकड़े:
एक रिपोर्ट के अनुसार, 3,679 से अधिक घटनाएँ दर्ज की गईं, जिनमें हिंदुओं की संपत्ति लूटी गई, धार्मिक स्थलों को क्षति पहुंचाई गई, और हिंसा में उनकी जानें गईं【11】।

समाज पर प्रभाव:
इस तरह के हमलों ने न केवल बांग्लादेश में हिंदुओं के जीवन को खतरे में डाला, बल्कि भारत और अन्य देशों में शरणार्थियों की समस्या को भी बढ़ावा दिया।


अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा

रामी रेंजर और अनिल भनोट के मामलों से एक और महत्वपूर्ण मुद्दा सामने आता है—आलोचना और विरोध के अधिकार पर दबाव।

रामी रेंजर ने एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठन की रिपोर्ट पर टिप्पणी की थी, जो उनके विचार में पक्षपाती थी।

अनिल भनोट ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए समर्थन व्यक्त किया, लेकिन उनके विचारों को 'इस्लामोफोबिक' बताकर खारिज किया गया।


ब्रिटेन जैसे लोकतांत्रिक देश में, जहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है, इस प्रकार की कार्रवाई चिंता का विषय है।

धार्मिक और सांस्कृतिक सहिष्णुता का महत्व

आज के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में, धार्मिक और सांस्कृतिक सहिष्णुता को बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। किसी भी समाज में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना न केवल नैतिकता की दृष्टि से सही है, बल्कि यह लोकतंत्र की आधारशिला भी है।

सांस्कृतिक बहुलता और विकास:
बहुसांस्कृतिक समाज में विभिन्न समुदायों का योगदान उसे समृद्ध बनाता है। इन दोनों हस्तियों ने भी ब्रिटेन के समाज में योगदान दिया है।


निष्कर्ष: समाधान की राह

1. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबाव:
बांग्लादेश जैसे देशों में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एकजुट होना होगा।


2. मीडिया की भूमिका:
मीडिया को निष्पक्षता और जिम्मेदारी के साथ रिपोर्टिंग करनी चाहिए, ताकि किसी समुदाय या देश की छवि प्रभावित न हो।


3. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा:
लोकतांत्रिक देशों में आलोचना और विचार व्यक्त करने के अधिकार को संरक्षित करना अनिवार्य है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कश्मीर के रास्ते ही सुलझेगी कश्मीर समस्या

कश्मीर भारत की नाभि है, जहां उसकी अंतरराष्ट्रीय रणनीति का अमृत है। उसका सूखना भारत की अंतरराष्ट्रीय शाख और उसकी भू राजनैतिक स्थिति दोनों को प्रभावित करेगी। इसलिए लगभग 70 वर्षों से यह भारत के लिए नाक का सवाल बना है। इसके बावजूद स्वयं कश्मीरियों की स्थिति इन 70 सालों में लगातार बदतर हुई है, चाहे वह पाक अधिकृत हो या भारत द्वारा अंगीकृत। इन दोनों के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान है । 

संस्कृति चिंतक कुबेरनाथ राय की स्मृति में जारी हुआ डाक टिकट

कुबेरनाथ राय पर डाक टिकट जारी करते हुए माननीय संचार राज्यमंत्रीभारत सरकार श्री मनोज सिन्हा जी 9 मार्च, नई दिल्ली। भारत सरकार के संचार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) माननीय मनोज सिन्हा दवारा हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार और भारतविद् कुबेरनाथ राय पर एक डाकटिकट जारी किया गया। कार्यक्रम का आयोजन कुबेरनाथ राय के गृहजनपद ग़ाज़ीपुर के जिला मुख्यालय स्थित मुख्यडाकघर में किया गया। इस कार्यक्रम में स्वर्गीय राय साहब के अनुज पंडित वात्स्यायन भी बतौर विशिष्ट अतिथि शामिल हुए। कार्यक्रम का आयोजन स्वर्गीय राय साहब के गृह जनपद ग़ाज़ीपुर के प्रधान डाकघर में 9 मार्च को अपराह्न 2 बजे किया गया था। सम्मानित हुई उनकी जन्मभूमि गाजीपुर दीप प्रज्वलन करते स्वर्गीय राय के अनुज पंडित नागानंद जी हिंदी के अद्वितीय निबंधकार कुबेरनाथ राय का जन्म 26 मार्च 1933 को गाजीपुर जनपद के ही मतासां गांव में हुआ था। वे अपने सेवाकाल के अंतिम दिनों में गाजीपुर के स्वामी सहजानंद सरस्वती महाविद्यालय के प्राचार्य रहे, जहां से सेवानिवृत्त होने के बाद 5 जून 1996 को उनका देहावसान उनके पैतृक गांव में ही हुआ। कुबेरन...