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बांग्लादेश: दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए नई चुनौती


बांग्लादेश में हालिया घटनाएं केवल वहां के आंतरिक राजनीतिक परिदृश्य तक सीमित नहीं हैं, बल्कि दक्षिण एशिया और व्यापक वैश्विक राजनीति पर भी गहरा प्रभाव डाल रही हैं। यह क्षेत्र, जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से भारतीय उपमहाद्वीप और भारतीय सभ्यता का अभिन्न हिस्सा रहा है, अब बाहरी शक्तियों के हस्तक्षेप और कट्टरपंथी ताकतों के उभार का केंद्र बनता जा रहा है।

बांग्लादेश: ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जुड़ाव

बांग्लादेश का भारतीय उपमहाद्वीप से संबंध केवल भूगोल तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक स्तर पर गहरी हैं। शांति, सहिष्णुता और सह-अस्तित्व बांग्लादेश की पहचान का हिस्सा रहे हैं। 1971 में भारत की निर्णायक भूमिका ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता को आकार दिया, और इसके बाद से दोनों देशों के संबंध कूटनीतिक और आर्थिक साझेदारी से परिपूर्ण रहे हैं।

बदलाव का दौर और बाहरी हस्तक्षेप

हालांकि, बांग्लादेश में हाल के वर्षों में जो बदलाव हुए हैं, वे अचानक नहीं हैं। भारत में बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर उठने वाले सवालों और बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता के बीच, बाहरी ताकतें, विशेष रूप से अमेरिका, इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं।

अमेरिका ने बांग्लादेश को अपना सैन्य अड्डा बनाने का प्रस्ताव दिया, जिसे बांग्लादेश सरकार ने खारिज कर दिया। यह कदम न केवल बांग्लादेश की संप्रभुता के लिए खतरा है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता को भी प्रभावित कर सकता है। अमेरिका की रणनीति हमेशा अस्थिरता के जरिए प्रभाव बढ़ाने की रही है। तालिबान, पाकिस्तान, और अन्य कट्टरपंथी ताकतों का उपयोग उसकी इस नीति का प्रमाण है।

कट्टरपंथ का खतरा और भारत के लिए चुनौतियां

बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतों का उभार न केवल वहां की स्थिरता के लिए खतरा है, बल्कि भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में भी अशांति पैदा कर सकता है। कट्टरपंथी गुटों को अमेरिका और पाकिस्तान का समर्थन मिलना क्षेत्रीय स्थिरता को कमजोर करने वाला है।

भारत के लिए यह स्थिति विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि बांग्लादेश के रास्ते ऐसे तत्व भारत की सीमा तक पहुंच सकते हैं। यह स्थिति कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की तरह पूर्वोत्तर में अराजकता फैला सकती है।

अमेरिकी रणनीति: अस्थिरता और वर्चस्व का खेल

अमेरिका की "अस्थिर करो और राज करो" की नीति अब एशिया पर केंद्रित है। दक्षिण एशिया में भारत और चीन की बढ़ती ताकतें, अमेरिका के लिए चुनौती बनती जा रही हैं। बांग्लादेश की भौगोलिक स्थिति और उसका छोटा, कमजोर राष्ट्र होना अमेरिका के लिए इसे प्रभाव में लेने का आदर्श अवसर प्रदान करता है।

शेख हसीना सरकार ने अमेरिकी दबाव के सामने झुकने से इनकार किया है, लेकिन विपक्षी और कट्टरपंथी ताकतें अमेरिका के लिए अवसर पैदा कर रही हैं। अगर बांग्लादेश में अस्थिरता बढ़ती है, तो यह केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया और आसियान देशों के लिए खतरा बन सकता है।

समाधान की ओर

भारत और अन्य एशियाई देशों को मिलकर बांग्लादेश में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए प्रयास करने होंगे।

1. क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा:
बांग्लादेश के साथ भारत को अपने सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों को और मजबूत करना चाहिए।


2. कट्टरपंथी ताकतों का उन्मूलन:
बांग्लादेश और भारत को साथ मिलकर कट्टरपंथ के खिलाफ खुफिया और सुरक्षा सहयोग बढ़ाना होगा।


3. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर संयुक्त प्रयास:
एशियाई देशों को अमेरिका और अन्य बाहरी ताकतों के हस्तक्षेप के खिलाफ एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद करनी होगी।



निष्कर्ष

बांग्लादेश में अमेरिका की उपस्थिति और वहां अस्थिरता पैदा करने की उसकी कोशिशें केवल दक्षिण एशिया ही नहीं, बल्कि पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए एक गंभीर खतरा हैं। यदि बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतों को बढ़ावा मिला, तो यह दुनिया के लिए एक नया संकट केंद्र बन सकता है। एशियाई देशों को मिलकर इस खतरे का सामना करना होगा और बांग्लादेश को बाहरी हस्तक्षेप से बचाना होगा। स्थिरता और शांति के लिए यह जरूरी है कि भारत, बांग्लादेश और अन्य एशियाई देश मिलकर कार्य करें।


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