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भारत और अमेरिका के संबंध

 


भारत और अमेरिका के संबंध हाल के वर्षों में काफी मजबूत हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद, कुछ मुद्दों पर मतभेद या "तल्ख़ी" उभर सकती है। यह तल्खी कई कारकों के कारण होती है, जिनमें रणनीतिक, आर्थिक, और राजनीतिक मुद्दे शामिल हैं। आइए इन कारणों पर विस्तार से चर्चा करते हैं:


1. भू-राजनीतिक मतभेद

(a) रूस के साथ भारत के संबंध

  • रूस-यूक्रेन युद्ध:
    अमेरिका ने रूस के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है और रूस पर कई प्रतिबंध लगाए हैं। भारत ने रूस के साथ व्यापार और ऊर्जा खरीद जारी रखी, जिससे अमेरिका ने असंतोष जताया।
  • रूस से हथियारों की खरीद:
    भारत की रक्षा प्रणाली का एक बड़ा हिस्सा (लगभग 60-70%) रूसी हथियारों पर निर्भर है। अमेरिका ने भारत को रूस से S-400 मिसाइल सिस्टम खरीदने पर आपत्ति जताई, लेकिन भारत ने इसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकता बताया।

(b) चीन के प्रति अलग रुख

  • अमेरिका चीन को एक प्रत्यक्ष खतरे के रूप में देखता है और उसे रोकने के लिए आक्रामक रणनीति अपनाता है।
  • भारत भी चीन से सतर्क है, लेकिन उसकी नीति तुलनात्मक रूप से संतुलित और रणनीतिक है, जिसमें चीन के साथ वार्ता और सहयोग के लिए जगह छोड़ी जाती है।

2. व्यापार और आर्थिक मुद्दे

(a) व्यापार में असंतुलन

  • अमेरिका ने भारत पर "प्रोटेक्शनिस्ट" (संरक्षणवादी) नीतियां अपनाने का आरोप लगाया है। भारत अपने घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए उच्च आयात शुल्क लगाता है, जो अमेरिकी कंपनियों के लिए चुनौतीपूर्ण है।
  • डेटा लोकलाइजेशन और ई-कॉमर्स नीतियों में मतभेद भी अमेरिकी टेक कंपनियों (जैसे Amazon, Google) और भारत के बीच तनाव बढ़ाते हैं।

(b) वीज़ा और आउटसोर्सिंग

  • भारत ने H-1B वीज़ा पर सख्त अमेरिकी नीतियों की आलोचना की है, क्योंकि इससे भारतीय पेशेवरों और आईटी उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • अमेरिका को लगता है कि भारत आउटसोर्सिंग के माध्यम से अमेरिकी नौकरियों को प्रभावित करता है।

3. मानवाधिकार और लोकतंत्र पर असहमति

  • अमेरिका ने भारत में हाल के वर्षों में मानवाधिकारों, धार्मिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर चिंता व्यक्त की है।
  • भारत ने इसे अपनी "आंतरिक मामलों" में हस्तक्षेप के रूप में देखा और कहा कि लोकतंत्र और मानवाधिकारों के मुद्दे पर उसे "पाठ पढ़ाने" की जरूरत नहीं है।

4. पर्यावरण और ऊर्जा नीति

  • भारत ने जलवायु परिवर्तन पर अपनी जिम्मेदारी स्वीकार की है, लेकिन यह विकसित देशों (विशेष रूप से अमेरिका) पर अधिक जिम्मेदारी डालता है।
  • अमेरिका चाहता है कि भारत कोयले पर अपनी निर्भरता तेजी से कम करे, जबकि भारत इसे विकासशील देशों के लिए अव्यावहारिक मानता है।

5. कूटनीतिक प्राथमिकताएं

  • क्वाड (QUAD) और इंडो-पैसिफिक रणनीति:
    दोनों देश क्वाड और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सहयोग करते हैं, लेकिन भारत इस रणनीति को चीन के खिलाफ सैन्य गुट में बदलने से बचना चाहता है।
  • गुटनिरपेक्षता:
    भारत अपनी गुटनिरपेक्ष नीति और रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) बनाए रखना चाहता है, जबकि अमेरिका चाहता है कि भारत उसकी नीतियों का अधिक समर्थन करे।

6. तकनीकी और रक्षा सहयोग में मतभेद

  • भारत अमेरिका से अधिक उन्नत सैन्य और तकनीकी सहयोग की मांग करता है, लेकिन अमेरिका संवेदनशील तकनीकों को साझा करने में संकोच करता है।
  • भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते रक्षा सहयोग के बावजूद, भारत अपनी स्वदेशी रक्षा क्षमताओं को प्राथमिकता देता है।

तल्खी कम करने के उपाय

  1. संवाद और कूटनीति: मतभेदों को कम करने के लिए नियमित उच्च-स्तरीय वार्ता की आवश्यकता है।
  2. व्यापार संबंध सुधारना: द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने और असंतुलन को कम करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।
  3. रक्षा और तकनीकी साझेदारी: दोनों देशों को एक-दूसरे की सुरक्षा चिंताओं को समझकर काम करना चाहिए।
  4. बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग: ब्रिक्स, क्वाड और G20 जैसे मंचों पर बेहतर तालमेल से संबंध मजबूत हो सकते हैं।

निष्कर्ष

भारत और अमेरिका के संबंधों में "तल्खी" मतभेदों के कारण हो सकती है, लेकिन दोनों देशों के बीच संबंध सहयोग और साझा हितों पर आधारित हैं। यह मतभेद अस्थायी हैं और इन्हें कूटनीति और आपसी समझ से हल किया जा सकता है। दोनों देश जानते हैं कि उनके बीच मजबूत साझेदारी वैश्विक स्थिरता और विकास के लिए आवश्यक है।

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