शहादतें सिर्फ सीमाओं पर और जंगलों में नहीं होतीं । अपने गावों और घरों में भी होती हैं । भरोसा न हो तो सहारनपुर देख लीजिए । देश में केवल सुकमा और कश्मीर नहीं सहारनपुर भी है । सर्जिकल स्ट्राइक केवल कश्मीर के मोर्चे पर क्यों ? जवाबी कारवाई केवल सुकमा और बस्तर में क्यों ? आपके घरों में क्यों नहीं ? अरे आप तो काँपने लगे, बावु साहेब! मैंने तो केवल बात की आप तो पूरी कारस्तानी कर आए हैं। तब आपके हाथ नहीं काँपे अब आपका पूरा वजूद काँप गया । यही सोच रहे हैं न कि आपके इन कोमल हाथों का प्रतिवाद अगर किसी कठोर हाथों ने दे दिया तो संभाल भी नहीं पाएंगे । फिर किस बात का दंभ है-- देश के गृहमंत्री का या प्रदेश के मुख्यमंत्री का ( आप के गोतिया हैं न दोनों 'रामराज' के भविष्य ?) या अपनी कुलीनता का? माफ कीजिएगा वो आपके लिए कुछ नहीं कर सकते और न आपकी अमानवीय नीचकर्मा 'कुलीनता' । अगर ये सब अकुलीन मिल उठ खड़े हुए तो ... अरे ! आप नाहक सोच में पड़ गए । मैं तो बस सामाजिक और मानसिक सर्जिकल स्ट्राइक की बात कर रहा हूँ। सीमा और सुकमा के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी । आप जिस मानसिकता में लोगों के घर जलाते हैं, वही मानसिकता सीमा और जंगलों में हमारे सैनिकों को शहीद करती है । जैसे आप ठाकुर और वे दलित हैं, वैसे ही सीमा पार का आदमी यह सोचता है कि वह पाकिस्तानी है और आपके सिपाही भारतीय या सुकमा के माओवादी सोचते हैं कि वे सर्वहारा के लिए संघर्ष कर रहे हैं और सिपाही सत्ता के एजेंट तथा उसकी शक्ति हैं, इसलिए उन्हें नष्ट करना या क्षति पहुंचाना वे अपनी जन्मसिद्ध धिकार मानते हैं । पहले मनुष्य को मनुष्य मानने की तमीज तो पैदा करिए , अन्यथा सहारनपुर तो नहीं रुकेगा, सुकमा और कश्मीर भी नहीं रुकेगा । सब यूं ही चलता रहेगा और आप जैसी आकृति वाले विभिन्न जाति, गोत्र, देश और विचारधारा के लोग यूं ही कटते रहेंगे ।
समाज, संस्कृति, साहित्य और विश्व-निति का वर्तमान
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