मुझे नसीरुद्दीन शाह के बयान में दो बाते अच्छी लगी। पहली कि अच्छाई या बुराई से धर्म का रिश्ता नहीं है और दूसरा हमें हालात से डरना नहीं उस पर गुस्सा आना चाहिए। इससे लगता है कि वे भीड़ के कानून को हाथ में लेने पर सवाल उठा रहे हैं पर अचानक गाय का एंगल डालकर और अपने बच्चों के हिन्दू-मुसलमान पूछकर मार दिए जाने वाली बात को उठाकर वे कहीं न कहीं हिन्दू-मुसलमान एंगल की ओर झुक जाते हैं। यह बात उनके बयान में आगे और साफ है। इस बयान में उन्होंने एक बात और कही कि मुझे मज़हबी शिक्षा मिली थी और मेरी पत्नी (रत्ना पाठक) को इस तरह की शिक्षा नहीं मिली थी पर मैंने अपने बच्चों को मज़हबी शिक्षा नहीं दी, उन्हें कुरान की कुछ आयतें सिखाईं। यह बात इतनी सीधी नहीं है, जितनी दिखती है। नसीरुद्दीन शाह की पत्नी रत्ना पाठक एक हिन्दू ब्राह्मण परिवार में पैदा हुईं पली-बढ़ीं और उन्होंने नसीरुद्दीन शाह से शादी की। इस बात को वह उनकी धार्मिक शिक्षा के अभाव से जोड़कर देखते हैं। ऐसा करते हुए वे हिंदुओं की उस उदारता को नजरंदाज कर जाते हैं, जिसके कारण रत्ना पाठक नसीरुद्दीन शाह से और उन जैसे तमाम शाह,खान,पटौदी आदि आदि हिन्दू परिवारों की लड़कियों से विवाह करते हैं और सदियों से बिना बड़े प्रतिरोध के करते आ रहे हैं। इस दूसरी बात में एक पेंच यह भी है कि वे बताते हैं कि उन्होंने अपनी पत्नी की तरह ही अपनी औलादों को भी मजहबी तालीम नहीं दी, केवल कुरान की कुछ आयतें याद कराईं, गोया कुरान किसी विज्ञान या गणित की प्रमेय का ग्रंथ हो । वे इसके पक्ष में यह भी बताते हैं कि उन्होंने भाषा का उच्चारण ठीक करने के लिए ऐसा किया जैसे रामायण और माहाभारत को पढ़ने से हिंदी का उच्चारण होता है । मैंने आज तक किसी भी व्यक्ति को हिंदी का उच्चारण ठीक करने के लिए ऐसा करते नहीं देखा न नासिर साहब ने ही इस बात का जिक्र किया है कि हिंदी के लिए अपने बच्चों को इन पुस्तकों का अध्ययन भी कराया (वैसे भी ये कुरान की तरह की धार्मिक पुस्तके नहीं हैं) । पता नहीं क्यों वे यह स्वीकारने में हिचक रहे थे की उन्होने धार्मिक तालीम भले न दी हो, उनके बच्चों का धर्म इस्लाम ही है और वे 'मोडरेट मुस्लिम' हैं । अगर वे स्वयं इतने उदार थे तो उन्होंने कुरान के साथ गीता, रामायण या महाभारत के श्लोक क्यों नहीं रटाए ? दरअसल उनके बयान के इस हिस्से में लोच है । ये उनकी नहीं तमाम मुस्लिम बुद्धि जीवियों की सोच का लोच है, वे हिंदू नामधारी लोगों की एक छींक में भी हिंदुओं से मुसलमानों पर खतरा देख लेते हैं और खुद अपनी पुरानी कथरी को छोड़ नहीं पाते हैं । लॉ एंड ऑर्डर के मामले को भी खींचकर हिन्दू-मुस्लिम में फेंट देते हैं, जो सामनी हिंदुओं के भीतर भी आक्रोश का कारण बनता है । हिंदुओं से डरे हुए इन मुस्लिम फिल्मी हस्तियों या बुद्धिजीवियों की एक खास बात यह भी है कि इनमें कई की पत्नियाँ मुसलमान नहीं हिन्दू रही हैं। मुझे आश्चर्य है कि नसीरुद्दीन शाह ने उस दिन सैफ आली खान( विवाह-पूर्व हिन्दू लड़की करीना कपूर के पति ) को यह सलाह क्यों नहीं दी, जब सैफ आली खान एक आक्रांता लुटेरे के नाम पर अपने बेटे का नाम रख रहे थे, जबकि उस लुटेरे ने केवल हिंदुओं को नहीं लूटा क्या हिन्दू-क्या मुसलमान सबको लूटा और सबके साथ क्रूरता की । एक देश के अपमान और उसके साथ क्रूरता करने वाले के नाम पर एक नामी हस्ती द्वारा प्रचारित ढंग से अपनी संतान का नाम रखना भी अव्वल दर्जे की क्रूरता ही थी, जिसे उन्हीं भारतीयों (बहुसंख्यक हिंदुओं) ने बरदाश्त किया । फिर भी अगर नसीर साहब को लगता है कि उनकी संतानों से यह पूछकर एक दिन मार दिया जाएगा कि वे हिन्दू हैं या मुसलमान तो जिसने भी उन्हें कहीं और जा कर बसने की सलाह दी वह बेहतर ही है ।
समाज, संस्कृति, साहित्य और विश्व-निति का वर्तमान
टिप्पणियाँ