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संस्कृति चिंतक कुबेरनाथ राय की स्मृति में जारी हुआ डाक टिकट


कुबेरनाथ राय पर डाक टिकट जारी करते हुए माननीय संचार राज्यमंत्रीभारत सरकार श्री मनोज सिन्हा जी
9 मार्च, नई दिल्ली। भारत सरकार के संचार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) माननीय मनोज सिन्हा दवारा हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार और भारतविद् कुबेरनाथ राय पर एक डाकटिकट जारी किया गया। कार्यक्रम का आयोजन कुबेरनाथ राय के गृहजनपद ग़ाज़ीपुर के जिला मुख्यालय स्थित मुख्यडाकघर में किया गया। इस कार्यक्रम में स्वर्गीय राय साहब के अनुज पंडित वात्स्यायन भी बतौर विशिष्ट अतिथि शामिल हुए। कार्यक्रम का आयोजन स्वर्गीय राय साहब के गृह जनपद ग़ाज़ीपुर के प्रधान डाकघर में 9 मार्च को अपराह्न 2 बजे किया गया था।
सम्मानित हुई उनकी जन्मभूमि गाजीपुर
दीप प्रज्वलन करते स्वर्गीय राय के अनुज पंडित नागानंद जी


हिंदी के अद्वितीय निबंधकार कुबेरनाथ राय का जन्म 26 मार्च 1933 को गाजीपुर जनपद के ही मतासां गांव में हुआ था। वे अपने सेवाकाल के अंतिम दिनों में गाजीपुर के स्वामी सहजानंद सरस्वती महाविद्यालय के प्राचार्य रहे, जहां से सेवानिवृत्त होने के बाद 5 जून 1996 को उनका देहावसान उनके पैतृक गांव में ही हुआ। कुबेरनाथ राय और उनकी मातृभूमि दोनों को सम्मानित करने के लिए मंत्रालय ने इस कार्यक्रम को गाजीपुर में आयोजित करने का निर्णय लिया। एक अन्य निबंधकार विवेकी राय की जन्मभूमि भी गाजीपुर रही है, जो अपनी आंचलिकता के लिए मशहूर रहे हैं। इनके अतिरिक्त गाजीपुर राही मासूम रजा और गोपालराम गहमरी जैसे ख्यातिलब्ध उपन्यासकार और रामबहादुर राय जैसे कद्दावर पत्रकार की जन्मभूमि है।


 ललित निबंध विधा के शिखर पुरुष थे कुबेरनाथ राय

हिंदी के कुबेरनाथ राय हिंदी साहित्य की एक विशिष्ट विधा ललितनिबन्ध में अपने अग्रणी योगदान के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध रहे हैं। इस विधा के पुरस्कर्ता आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी और अपने वरिष्ठ समकालीन पंडित विद्यानिवास मिश्र के साथ श्री राय ललितनिबन्धकारों की एक त्रयी बनाते हैं। उन्होंने अपने पूर्वर्ती निबंधकारों इस क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान के लिए उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा मूर्ति देवी पुरस्कार सम्मानित भी किया गया था। इसके अतिरिक्त उत्तरप्रदेश सरकार और अन्य साहित्यिक संस्थाओं से भी उन्हें अनेकश: सम्मानित और पुरस्कृत किया गया है।


भारत की आजादी से पूर्व भारतीय समाज और संस्कृति को जानने समझने की एक साम्राज्यवादी पहल ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा शुरू की गई, उसके समांतर अपनी संस्कृति को पहचानने और उसकी विशिष्टताओं को रेखांकित करने के देशज प्रयास भी हुए जो साम्राज्यवाद प्रेरित इतिहास-दृष्टि का विरोध करती हुई एक देशज इतिहासबोध का निर्माण कर रहे थे। इनमें श्रीलंकाई मूल के अमेरिकी नागरिक सर अनांद के कुमारस्वामी और काशीहिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और प्रसिद्ध इतिहासकार एवं कलाविद वाशुदेवशरण अग्रवाल मुख्य थे। कुबेरनाथ राय उसी परंपरा को आगे बढ़ाने वाले संस्कृतिविद थे।
उनके निबंधों की थीम भारतीय संस्कृति और चिंतन से जुड़ी थी। रामकथा, भारतीय साहित्य और गंगातीलोक जीवन उनके सबसे विषय थे। निषाद बांसुरी, उत्तरकुरु, कामधेनु,त्रेता का वृहत्साम, महाकवि की तर्जनी, रामायण महातीर्थम सहित 21 निबंधसंग्रहों में 300से अधिक निबंध उनकी इस सांस्कृतिक दृष्टि के गवाह हैं। उन्होंंने रामकथा पर तीन स्वतंत्र कृृतियाँ भी लिखी हैै। गांधीवादी कला दृष्टि की पहचान और उसका प्रतिपादन साहित्य-चिंतन को उनकी मौलिक देन है।

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