#MeeToo के दौर में अब जबकि तमाम औरतें और लड़कियां अपने अनुभवों को सामाजिक माध्यमों पर साझा कर रहीं है तो कुछ स्त्रीवादी पुरुषों के जोरे जामे उतरने लगे हैं। वे इस हादसे से इतने अकबका गए हैं कि आंय-बांय-सांय बोलने और लॉबिंग करने लगे हैं। स्त्री-दलित-आदिवासी की एका की बात करने वाले तमाम साथी अचानक उन स्त्रियों पर आक्रामक होगए है। कुछ मर्दवादी स्त्रियां भी हैं, जो अबतक स्त्रीवादी चोले में थीं आज अचानक चोला उतार साथी पुरुषों का झोला उठा चुकी हैं। हम जैसे रूढ़, सामंती और मर्यादावादी पुरुषों को बात करने का हक नहीं , यह हम जानते हैं, पर आपकी अचानक खलबली यह तो बताती ही है कि कहीं न कहीं किसी न किसी ने आपके बिल में पानी तो डाल ही दिया है, जिससे आप खलबला कर बाहर निकल आए हैं। चोले ओढ़कर रंग बदलना कब तक चलेगा साथी ? अभी तो कुछ ही जबानें हिली हैं, सब हिलेंगी तो क्या होगा? आपकी लोकतांत्रिकता, उदारता और समता की मीनारें भरभरा कर गिर जाएंगी । अभी भी देश इतना जागरूक नहीं है कि हर लड़की बात-बात पर कोर्ट जाए और उसे रोजमर्रे की जिंदगी भी बसर करनी होती है। फिर भी, जो जबानें हिली हैं उनके खिलाफ लामबंद होकर होहो करने से बाज आइए और अपने आसपास देखिए कहीं आप भी तो स्त्रियों के करीब पहुंचने और उसका फायदा उठाने के लिए स्त्रीवादी नहीं बने थे ? कहीं हम सामंतवादियों की तरह आप में भी तो स्त्री के प्रति कुंठित न थे, पर अपनी कुंठा का रंग बदलने में माहिर थे। इसलिए अब पकड़े गए तो तिलमिला उठे।
#MeToo पूरा तब होगा जब स्त्रियों के साथ-साथ पुरुष भी इस कैम्पेन में खुलकर शामिल हों अपना अनुभव और अपना सच बताएँ। बचपन की कुछ धुंधली यादें आपके मन में भी हो सकती हैं, जिसे आप अपने पुरुषवादी अहं के नीचे दफन किए बैठे हों। हो सकता है किसी पुरुष या स्त्री का छूना आपके लिए भी उतना ही असहज रहा हो, जितना एक फीमेल चाइल्ड के लिए। हो सकता है आप भी कुछ दूर या बहुत दूर तक किसी की कुंठा के शिकार हुए हो जिसे तब भोलेपन में और अब सब जानने समझने के बाद लोक-लाज में स्वीकार न कर आ रहे हों। यह भी हो सकता है कि कभी अनायास छू जाने पर भड़क जाने वाली फीमेल सहपाठी या सहकर्मी या सहयात्री आपको सायास छूकर सॉरी भी न बोलती हों या बोलते हुए ऐसा जताती हों कि उन्होंने उल्टे छूकर आपपर उपकार किया हो। यह भी हो सकता है कि इनसे बड़ा कोई अत्याचार करके भी 'मैं अबला बाला वियोगिनी कुछ तो दया विचारो वाली नकद से देख देतीं है और आप पसीज जाते हैं । संभव है उन्हें स्त्री होने की छूट मिल जाती हो और आप उल्टे फँसने के डर से चुप लगा जाते हों।
यौन कुंठाएं इकहरी नहीं होती साथी! दोनों ओर और दोनों के साथ होती हैं। हाँ पुरुष बेहया होता है, उसका नारा जल्दी खुल जाता है। पर, उसका अहं भी बड़ा होता है खुद को 'मर्द' दिखाने की कोशिश में वह कुछ बर्दाश्त करता है, कुछ बर्दाश्त के काबिल न होते हुए भी दबा जाता है और कुछ को कहीं और निकलने को बेचैन रहता है। यह बेचैनी भी उसे अपराधी बना सकती है।
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